Saturday, June 25, 2011

पेटा की नग्नता

Teenager Kills Dog Hoping For Another Nude-Girl PETA Ad

PETA: Fuelling Teenage Fantasies. Since 1980


PETA: Fuelling Teenage Fantasies. Since 1980



कौन है कविता राधे श्याम? कुछ दिन पहले इसका जवाब मुस्किल था। लेकिन आज उसकी लोकप्रियता इस हद तक पहुंच चुकी है कि पत्रकारों को उसके खिलाफ लिखने पर उसके प्रशंसकों की ओर से जान मारने तक की घमकियां मिल रही हैं। कहां से मिले इतने समर्पित प्रशंसक? विक्रम भट्ट की आने वाली फिल्म ‘पांच घण्टे में पांच करोड़’ के बारे में शायद ही आज भी किसी को पता है, लेकिन इतना अब अधिकांश सिने प्रेमियों को पता चल गया है कि उसकी नायिका कविता राधे श्याम होंगी। कविता राधे श्याम की इस त्वरित लोकप्रियता की सिर्फ एक वजह दिखायी देती है, उसका न्यूड फोटो सेशन। जो आज इण्टरनेट पर सबसे ज्यादा खोजी जाने वाली चीजों में शुमार की जाने लगी है। इण्टरनेट पर दिखते लम्बे फोटो सेशन में हर कोण से न्यूड दिखती कविता राधेश्याम ने अपने नग्नता को सिर्फ नग्नता ही नहीं रहने दी बल्कि उसे एक उद्देश्य से जोड़कर एक विशिष्टता प्रदान कर दी। इसके लिए कविता को सिर्फ अपने शरीर पर यत्र तत्र ‘सेव टाइगर’ लिखवाना पड़ा। और कविता के नग्न होने से टाइगर के सेव होने का क्या सम्बन्ध यह तो राम ही जाने। यूं भी कविता कैसे उम्मीद कर सकती है कि लोग उसके नग्न शरीर पर लिखी किसी इबारत पर भी गौर करेंगे। लेकिन पूनम के नग्न होने की घोषणा पर ही जब इंडिया टीम विश्वकप जीत जा सकती है तो कविता के घोषणा के पर अमल कर लेने से बाघ क्यों नहीं बच जा सकते। यह अपना अपना विश्वास है, सुखद है कि इस विश्वास से सुधी दर्शकों का भी सौंदर्यबोध थोड़ा संवर जाता है।

वास्तव में भारत में नग्नता तुरंत सुर्खियां उपलब्ध कराने का एक जाना पहचाना तरीका रहा है। वर्षों पहले प्रोतिमा बेदी ने समुद्र तट पर नग्न दौड़ कर शायद इसकी शुरूआत की थी। हालांकि बाद में दर्शकों को उनकी वह छवि याद भी नहीं रही और वे ओडिसी नृत्यांगना के रूप में अमर हो गर्इ। लेकिन चटपट सफलता की चाह में लगी लड़कियों को आज भी सुर्खियों में आने का वही तरीका सबसे मुफीद लगता है। होसियारी सिर्फ यह बरती जाने लगी है कि अपने नंगे होने को एक नाम दे दिया जाता है, उसे एक मुद्दे का झीना आवरण दे देने की कोशिश की जाती है। कविता को नग्न तो होना ही था लेकिन ‘सेव टाइगर’ का मुद्दा उसकी नग्नता को एक मतलब दे देता है। वास्तव में नग्न होती अभिनेत्रियों या मॉडलों को देखकर यही लगता है, नग्न होने के लिए वे तैयार पहले हो जाती हैं, मुद्दे बाद में तलाश लेती हैं। इसका लाभ भी दोहरा मिलता है, एक तो नग्न होने के व्यवसायिक लाभ सुरक्षित रहते ही हैं, दूसरा सामाजिक रूप से जागरूक होने कि पहचान वजीपेफ के रूप में मिल जाती है। सामाजिक मुद्दे की नेक नामी नग्नता की बदनामी को गौण कर देती है।

यही कारण है कि बीते वर्षों में गुमनाम अभिनेत्रियों की एक बड़ी तादाद ने अपने न्यूड फोटो सेशन के बल पर सुर्खियों में आने की हिम्मत जुटायी। उन्हें शायद अहसास था कि सामाजिक मुद्दे की छौंक उनके नग्नता को एक नया आकर्षण देगी। कविता की तो खैर बाघ बचाने की यह निजी पहल थी। जानवरों को बचाने के लिए सक्रिय संस्था ‘पेटा’ के साथ भी मुश्किल है कि इसकी जितनी पहचान वन्य प्राणियों के संरक्षण को लेकर है, उससे कहीं ज्यादा इसके नग्न मॉडलों केा लेकर है। निसंकोच कहा जा सकता है, ‘पेटा’ के साइट पर क्लिक करने वालों में एक बड़ी संख्या ऐसे रसज्ञों की ही होती है जिनकी दिलचस्पी उसके मुद्दे में कम, उसके मॉडलों में अधिक होती है। शर्लिन चोपड़ा, सेलिना जेटली, लारा दत्ता, इशा कोपिकर, जिया खान, अनुष्का शंकर और फिर मल्लिका शेरावत-राखी सावंत भला ऐसे मुद्दों में पीछे रह जायेगीं, यह तो सोंचा भी नहीं जा सकता। वन्य प्राणि के रक्षा के नाम पर इन सारी और इनके अलावे भी कर्इ अभिनेत्रियों ने भांति भांति से अमूमन नग्न होकर अपनी प्रस्तुति दी है। किसी ने अपने नग्न शरीर को बिल्ली की शक्ल में रंग लिया तो कोइ कपड़े उतार कर जानवरों के पिंजड़े में जा बैठी, अपने अपने सौंदर्यबोध और सीमा के अनुसार सबों ने अपने कपड़े उतार कर जानवरों को बचाने की कोशिश की। किसी ने कपड़े उतार कर फर के कपड़ों का प्रतिरोध किया तो एक मॉडल क्रिकेट बॉल में चमड़े के इस्तेमाल के खिलाफ कपड़े उतार कर खड़ी हो गइ। गजब है यह परिकल्पना? आंखों के बदले इन विज्ञापनों को देखते हुए यदि आप विचारों का इस्तेमाल करने लगें तो हतप्रभ रह जा सकते हैं। क्या वाकर्इ ‘पेटा’ को लगता है ये विज्ञापन उसके अभियान में प्रभावी होते हैं?

‘पेटा’ के ये विज्ञापन कितने सार्थक होंगे यह इसी से समझी जा सकती है कि इनमें से सभी डिजाइनर फैशन मैगजिनों में ही छपते हैं। आमजन के लिए सुलभ पत्रिकाओं में ये विज्ञापन सिर्फ खबरों में दिखायी देते हैं, स्टाम्प साइज के तस्वीरो के साथ। शायद आमजन की पत्रिकाओं को ऐसी तस्वीरों को छापने के लायक समझा ही नहीं जाता, और शायद इन पत्रिकाओं का सामान्य भारतीय सौंदर्यबोध इसकी इजाजत भी नहीं देता। जाहिर है वन्य प्राणियों की रक्षा के नाम पर वषोर्ं से नग्नता का यह खेल चलता आ रहा है, लेकिन समस्या दिन ब दिन बदतर होते जा रहे हैं। बावजूद इसके यह किसी आश्चर्य से कम नहीं कि ‘पेटा जैसी संस्था को भी अपने विज्ञापन अभियान के इस भद्दे तरीके की निरर्थकता समझ में नहीं आती। या फिर समझने की कोशिश नहीं की जाती, क्यों कि ‘पेटा’ को भी शायद बिना कुछ किये चर्चे में रहने का दूसरा तरीका समझ में नहीं आता। यदि मुद्दे उसके केन्द्र में होते तो निश्चित रूप से नग्नता में बाघ को बचाने में तरीके ढ़ूंढ़ने के बजाय वह भी एयर सेल जैसे विज्ञापन पर गौर कर रही होती जो अपने मुद्दे के प्रति ज्यादा गम्भीर रही है। आज जब कि विज्ञापन की दुनिया इतनी समृद्ध हो चुकी है कहने और समझाने के हजारों तरीके ढ़ूंढ़े जा रहे हैं ऐसे में ‘पेटा’ का अपने उद्देश्य के लिए सिर्फ नग्नता को प्रश्रय देना वाकर्इ समझ से परे है।

गौर तलब है कि ‘पेटा’ को यदि अपने मुद्दों के प्रति सेलिब्रिटी का सहयोग अनिवार्य ही लगता है तो फिर क्यों नहीं उसने हेमा मालिनी, रेखा या फिर माधुरी दीक्षित, करिश्मा कपूर या फिर कटरीना कैफ, करीना कपूर जैसी अभिनेत्रियों से सहयोग लेने की पहल की, जिनकी एक पब्लिक अपील भी है। क्यों उसे अपने मुद्दे के लिए शर्लिन चोपड़ा और राखी सावंत जैसी हासिये पर पड़ी अभिनेत्रियां ही नजर आती है? वास्तव में ‘पेटा’ का विज्ञापन अभियान म्यूचूअल अनडर स्टैंडिंग का प्रतीक दिखता है, ‘पेटा’ को बैठे बिठाये न्यूड मॉडल मिल जाते हैं और अभिनेत्रियों को मुद्दे का आवरण और दोनों को सुर्खियों के लक्ष की प्राप्ति हो जाती है। अब यह जिज्ञासा अपनी जगह है कि नग्न होने के लिए तैयार अभिनेत्रियां ‘पेटा’ की तलाश करती हैं या फिर ‘पेटा’ तलाश करती है ऐसी अभिनेत्रियों की जो पूरे कपड़े उतार सकती हों। चाहे जो भी हो, इतना सच है कि इस सारे संजाल के बीच यदि कुछ गुम हो जाता है तो वह है मूक वन्य प्राणियों के संरक्षण का पवित्र उद्देश्य।

1 comment:

  1. विनोद भाई, आपका लिखने का अंदाज प्रभावित करता है।
    समाज में नग्‍नता के सहारे लोकप्रियता की सीढिया चढना एक फैशन सा बन गया है।

    ------
    जादुई चिकित्‍सा !
    इश्‍क के जितने थे कीड़े बिलबिला कर आ गये...।

    ReplyDelete