Friday, July 22, 2011

प्यार के लिए ये जगह ठीक नहीं



खबर पटना की है,लेकिन किसी भी शहर की हो सकती है।भरी दोपहरिया शहर के व्यस्ततम चौराहे पर एक शापिंग काम्पलेक्स में पुलिस कथित रुप से छापा मारती है और वहां चल रहे साइबर और रेस्टोरेंट से कई युवा किशोर जोडो को थाने उठा लाती है।अपराध ऐसा जिसके लिए भारतीय दंड संहिता में सजा का कोई प्रावधान नहीं।जाहिर है पुलिस को शाम होते होते होते सबों को रिहा कर देना पडता है,अखबारों में खबर आती है चेतावनी देकर छोड दिया गया।यदि अपराध है तो सजा होनी चाहिए,चेतावनी का अर्थ ही यही है कि पुलिस उनके अपराध अपने आइ पी सी की धाराओं में समेट ही नहीं सकी।समेट सकती भी नहीं थी।क्योंकि प्रेम भारतीय समाज में कभी भी अपराध माना ही नही गया ।इसीलिए शायद प्रेम पर आइ पी सी की धाराओं में कहीं चर्चा भी

नहीं हुई कि ,किस तरह प्रेम करना चाहिए,कितना प्रेम करना चाहिए,कहां प्रेम करना चाहिए,कितने प्रेम पर सजा हो सकती है,और कितने पर संदेह का लाभ मिल सकता है।लेकिन इससे मुश्किल यह हुई कि प्रेम एक ऐसा अपराध बन गया जिससे निबटने के लिए सभी ने अपने अपने नियम बना लिए ।दारोगा से लेकर सिटी एस पी तक ,सभी के पास प्रेम से निबटने को अलग अलग तरीके।कोई बीच पार्क में कान पकड उठक बैठक लगवा संतुष्ट हो लेता है तो कोई दो चार लाठियां लगा कर,कोई थाने ले जाकर उनके साथ अकनी फोटू खिंचवा कर खुश हो लेता है तो कोई उनके साथ उनके अभिभावकों को जलील कर।

लेकीन सच यह भी है कि शहर में युवा जोड़े अब दिखने अब आम हो गये हैं। सिनेमा घर हो, मार्केटिंग काम्पलेक्स हो, रेस्टोरेन्ट हो, म्युजियम हो या पार्क या फिर शहर की खुली पसरी सड़कें। युवा जोड़े आपका धयान खींच ही लेते हैं। खास बात यह है है कि इन कथित युवा जोड़ों में बडी संख्या टीन एजर्स की होती है। दिल पर हाथ रख कर कहें तो आकर्षक लगती है इनकी निकटता, इनका खुलापन और इनकी निडरता ...। कहीं न कहीं पचास के आस-पास वाली पीढ़ी के मन में यह फांस भी छोड़ जाती है कि काश, ऐसा खुलापन उनके समय में भी रहा होता। तो जो जिन्दगी उन्होंने सामने की छत को घूरते हुए बिता दी, वह कुछ और होती। यह ऐसी फांस होती है, जो व्यक्ति किसी से भी शेयर नहीं कर सकता, सिर्फ खुद पर खीझता है कि प्रेम के प्रति यह हिम्मत उसने क्यों नहीं जुटा पायी थी।

आज की पीढ़ी प्रेम के लिए हिम्मत जुटा रही है। प्रेम के साथ भी भारतीय समाज की यह अद्भुत दुविधा रही है कि एक ओर उसके खिलाफ लाठियां बल्लम भी निकलती रही हैं, दूसरी ओर इसकी पूजा भी होती रही है। प्रेम अच्छा है, यह सब कहते हैं। लेकिन ढ़ेर सारी अपनी शर्तों के साथ। ऐसे हो, इतना ही हो, इस तरह हो, इस उम्र में हो, ..... भाइ मेरे तो यह प्रेम क्या हुआ? लेकिन आमतौर पर भारतीय समाज में उसी प्रेम की स्वीकार्यता है जो पूर्णत: ‘नियमानुकुल’ हो।

पटना में प्रम के बढते प्रचलन को लेकर शिकायत मुख्यमंत्री तक भी पहुंच गइ, कि कुछ किजीये, लोग बहुत प्रेम करने लगे हैं। इतना प्रेम कि लोगों का जीना दूभर हो गया है। किसी भी समझदार व्यक्ति को भला प्रेम पर क्या आपत्ति हो सकती थी, मुख्यमंत्री को भी नहीं हुइ। लेकिन वह मुख्यमंत्री की समझ थी, कानून व्यवस्था का जिम्मा तो पुलिस के पास है.प्रेम पर समझ उसकी चलनी है,यदि पुलिस को साइबर में लडके लडकियों को एक साथ बैठकर अपने रिजल्ट देखने या आनलाइन फार्म भरने में भी प्रेम दिखता है तो उसकी सजा तो बनती ही है।साथ बैठकर काफी पीने ,हाथ पकडने या थोडे करीब होकर बातें करने में प्रेम दिखता है तो उसकी सजा तो मिलनी ही है। मुख्यमंत्री के चाहने से क्या होता है।

ऐसी बात नहीं कि जो लडके लडकियां पटना में या अन्य शहरों में इस परह के छापों में पकडे जाते हैं सारे के सारे आनलाइन फार्म ही भर होते हैं या काफी ही पी रहे होते हैं,हो सकता है उससे ज्यादा भी कुछ कर रहे हों।सवाल है क्या वाकई वह ज्यादा ऐसा कुछ है जो आई पी सी की धाराओं के अंतर्गत आता है।यदि नहीं तो क्यों माना नहीं जाय कि वास्तव में इस तरह के छापों में मूलतः प्रेम के प्रति उनकी कुंठा अभिव्यक्त होती है, या फिर खबरों में आने की भूख।

खबरों के अब विजु्अल चाहिए,खबर वही जो दिखे।जाहिर है पुलीस के रुटीन कामों में ,चोर का पकडने में,गश्त करने में में वह विजुअल नहीं बनता जो एक साथ दो दर्जन युवतियों को चेहरे छिपाते दिखने में बनता है।आखिर क्यों दिलचस्पी ले पुलिस अपने रुटीन कामों में।

गौरतलब है पटना में छापे के बाद कैमरे के सामने सिर्फ लडकियें का परेड लगवायी गई ,लडके या तो पकड में नहीं आए या फिर उनकी इज्जत का ख्याल कर उन्हें परेड से दूर रखा गया।पुलिस की शातुर समझ की यह हद थी कि परेड तब लगवायी गई जब किसी पर कोइ आरोप नहीं थे,सिर्फ पुलिस की समझ थी कि लडके लडकियां बैठे हैं तो कुछ गलत ही कर रहे होंगे। पटना जैसी छोटी जगह में बीच दोपहर किसी रेस्टोरेंट या साइबर जैसी सार्वजनिक जगह पर कोइ कितना गलत कर सकता है।आश्चर्य नहीं कि उनके अभिभावकों को थाने बुलाया गया और चेतावनी देकर छोड दिया गया। पुलिस की समझ से यह एक सामान्य सी कार्रवाई हो सकती है,लेकिन लडकियों और उनके अभिभावकों के लिए यह छोटी सी घटना कितनी बडी नर्क साबीत होगी ,शायद पटना की वह महिला पुलिस अधिकारी अपनी क्षणिक वाहवाही में सोच भी नहीं सकी होगी।क्योंकि सोचने के लिए संवेदना चाहिए,समझ चाहिए।कतार में खडी लडकियों और सडकों पर जमा भीड की तीखी निगाहें ,हम उम्मीद कर सकते हैं जलालत की।लेकिन प्रेम के प्रति पुर्वाग्रह जब अपनी ही बहनों और बटियों की हत्या केलिए हमें तैयार कर देता है तो फिर पुलिस सेही क्यों प्रेम के प्रति सौजन्यता की उम्मीद रखें।

वास्तव में आज जब एक ओर बाजार ,सिनेमा, टेलीविजन,और विज्ञापन हर क्षण प्रेम को प्रेरित कर रहा हो ,जरुरी है कि नई पीढी पर भरोषा करते हुए उसके बिगडने को बरदाश्त करें या फिर प्रेम को पारिभाषित कर इसके लिए आइ पी सी में जगह ही बना दें।कम से कम प्रेम करने वाले को यह तो पता रहे कि वे एक गैरकानूनी काम कर रहे हैं।

1 comment:

  1. भैया संयोग की बात है कि इसी नाम का ब्लॉग मैंने पिछले साल खोला है, अब कन्फ्यूजन तो होगा, लेकिन कोई बात नहीं आप भी चलाइये मैं भी चलाता हूँ. शुभकामनाएं
    http://nithallekidiary.blogspot.com/

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